Saturday 8 November 2014

The Shaukeens : Film Review by Ajay Shastri (3 Star)

फिल्म समीक्षा : द शौकीन्स

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समीक्षक : अजय शास्त्री 
(संपादक) बॉलीवुड सिने रिपोर्टर
Email: editorbcr@gmail.com
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कलाकार : अक्षय कुमार, लीजा हेडन, अनुपम खेर, अन्नु कपूर और पीयूष मिश्रा
निर्देशकः अभिषेक शर्मा
संगीतकारः यो यो हनी सिंह और हार्ड कौर
रेटिंग : तीन स्टार 
अवधिः 125 मिनट
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(बीसीआर) हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एनएसडी की प्रतिभाओं के योगदान का आकलन अभी तक नहीं हुआ है। गौर करें तो इन प्रतिभाओं ने एक्टिंग की प्रचलित शैली को प्रभावित किया है। लेखन और निर्देशन में भी नई धाराएं खोली हैं। 'द शौकीन्स' एनएसडी की प्रतिभाओं का नया जमावड़ा और कार्य है। वैसे पिछली फिल्म में भी उत्पल दत्त और एके हंगल थिएटर की पृष्ठभूमि के थे। इस बार तीनों ही थिएटर से आए प्रशिक्षित अभिनेता हैं। अनुपम खेर, अन्नू कपूर और पीयूष मिश्रा में अन्नू कपूर का प्रदर्शन कमजोर रहा। वे कम फिल्में करते हैं, लेकिन जबरदस्त दोहराव के शिकार हैं। यह उनकी सीमा है या निर्देशक उनकी छवि या शैली दोहरा कर संतुष्ट हो जाते हैं। अनुपम खेर और पीयूष मिश्रा ने अपने किरदारों को समझा है। उन्होंने दृश्यों को अश्लील और फूहड़ नहीं होने दिया है। दोनों ने अपनी भूमिकाओं को शालीन रखा है। इसका श्रेय लेख-निर्देशक को भी मिलना चाहिए कि उन्होंने इस एडल्ट कॉमेडी को द्विअर्थी संवादों से बचाया है। बहुत आसानी से यह प्रचलित तरीके से अश्लील और भोंडी हो सकती थी। औरत को ऑब्जेक्ट के रूप में प्रस्तुत करना ही फिल्म का विषय है। इस संदर्भ में धूलिया और शर्मा का संयम दिखता है।
पिछली फिल्म में तीनों बूढ़े गोवा गए थे। ग्लोबल समय में आर्थिक समृद्धि और अच्छे दिनों के दौर में तीनों मॉरीशस जाते हैं। मॉरीशस की लोकेशन से फिल्म में खूबसूरती आ गई है। सदियों पहले भारत से मॉरीशस गए बिहारी मजदूरों की वंशज है आहना। नए जमाने की बेफिक्र लड़की, जिसकी जिंदगी में इमोशनल उतार-चढ़ाव फेसबुक के लाइक और कमेंट से प्रभावित होता है। वह अक्षय कुमार की फैन है। 'द शौकीन्स' में अक्षय कुमार ने अपनी खिलाड़ी इमेज,समीक्षकों की धारणा और नेशनल अवॉर्ड की चाहत से अपना अच्छा मजाक उड़वाया है। अक्षय कुमार की जिंदगी के सच और फिल्म की कल्पना से अच्छा प्रहसन तैयार हुआ है। फिल्म के इस प्रहसन में बंगाली निर्देशक बने सुब्रत दत्ता ने उत्प्रेरक का काम किया है। संयोग से सुब्रत दत्ता भी एनएसडी के हैं। फिल्म अंत में नया मोड़ ले लेती है।
अवधारणा की समानता के बावजूद इसे पुरानी 'शौकीन' की रीमेक के तौर पर देखने न जाएं तो अधिक आनंद आएगा। यह आज के दौर की फिल्म है। सभी कलाकारों और तकनीशियनों ने अच्छा काम किया है। कुछ कलाकारों के अभिनय में अवश्य दोहराव है। आत्ममुग्ध होने पर ऐसा होता है। कुछ समय पहले तक अनुपम खेर खुद को दाहरा रहे थे। अभी वे संभल ƒगए हैं। इस फिल्म में लीजा हेडन, पीयूष मिश्रा और सुब्रत दत्ता की अतिरित तारीफ करनी होगी। तिग्मांशु धूलिया और अभिषेक शर्मा तो बधाई के पात्र हैं ही।

Rang Rasiya : Film Review by Ajay Shastri (3 star)

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फिल्म समीक्षा : रंग रसिया (तीन स्टार)
फिल्म समीक्षक : अजय शास्त्री 
(संपादक)  बॉलीवुड सिने रिपोर्टर 
  • प्रमुख कलाकारः रणदीप हुड्डा, नंदना सेन और त्रिप्ता पाराशर
  • निर्देशकः केतन मेहता
  • संगीतकारः संदेश शांडिल्य
  • रेटिंग : तीन स्टार 


(बीसीआर) राजा रवि वर्मा केरल के चित्रकार थे। उन्होंने मुंबई आकर कला के क्षेत्र में काफी काम किया। विदेशों की कलाकृतियों से प्रेरित होकर उन्होंने भारतीय मिथक के चरित्रों को चित्रांकित करने का प्रशंसनीय कार्य किया। रामायण और महाभारत समेत पौराणिक "गाथाओं और किंवदंतियों को उन्होंने चित्रों में आकार दिया। सचमुच उनका काम कितना मुश्किल और कठिन रहा होगा? उनकी प्रेरणा थी सुगंधा। उन्होंने सुगंधा के अप्रतिम रूप को ही चित्रों में ढाला। धर्म की ओट में तब उन पर आक्रमण और मुकदमे किए गए। कोर्ट में कला और उसकी मर्यादा और स्वतंत्रता पर चली बहस अभी तक प्रासंगिक और जरूरी बने हुए हैं। नैतिकता के नाम पर पुरातनपंथियों का दुराग्रह आज भी जारी है। फिल्म के आरंभ में आज और अतीत की इस समानता को केतन मेहता ने कोलाज के जरिए दिखाया है। गौर करें तो समय और शासन बदलने के बावजूद समाज की सोच में अधिक बदलाव नहीं आया है। 'रंग रसिया' सेंसरशिप के सवालों से जूझती है। पृष्ठभूमि में राजा रवि वर्मा का जीवन है। आधुनिक सोच और तकनीक को स्वीकार करने के लिए सहज रूप से तैयार राजा रवि वर्मा ने आधुनिक कला की नींव रखी। दादा साहेब फालके ने उनकी संगत की थी। फिल्म के मुताबिक राजा रवि वर्मा की आर्थिक मदद से ही फालके फिल्म निर्माण में सक्रिय हुए थे।
सन् 2008 में बन चुकी यह फिल्म अब दर्शकों के बीच आज ०७.११.२०१४ को पहुंची है। इस फिल्म को लेकर विवाद भी रहे। कहा गया कि यह उनके जीवन का प्रामाणिक चित्रण नहीं है। हिंदी फिल्मों की यह बड़ी समस्या है। रिलीज के समय आपत्ति उठाने के लिए अनेक चेहरे और समूह सामने आ जाते हैं। यही कारण है कि फिल्मकार बॉयोपिक या सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्मों को अधिक प्रश्रय नहीं देते। केतन मेहता ने रंजीत देसाई के उपन्यास पर इसे आधारित किया है। मुमकिन है इस फिल्म और उनके जीवन में पर्याप्त सामंजस्य नहीं हो,लेकिन केतन मेहता ने राजा रवि वर्मा के जीवन और कार्य को सामयिक संदर्भ दे दिया है। यह फिल्म कुछ जरूरी सवाल उठाती है। 
केतन मेहता ने पीरियड फिल्म की जरूरत के मुताबिक परिवेश तैयार किया है। सेट और लोकेशन से उन्नीसवीं सदी के माहौल को पर्दे पर उतारा है। चित्रकार के जीवन पर आधारित इस फिल्म में उन्होंने रंगों का आकर्षक संयोजन किया है। राजा रवि वर्मा और सुगंधा के अंतरंग पलों को रचने में उन्हें रंगों से बड़ी मदद मिली है। वे दर्शकों को अपने साथ अतीत की गलियों में ले जाते हैं। अतीत के ये चरित्र करवट ले रही सदी की आहट समेटे हुए हैं। विदेशों में निश्चित ही अधिक प्रामाणिक बॉयोपिक बने होंगें, लेकिन इस आधार पर हम अपने फिल्मकारों की सीमा और सामर्थ्य में चल रही कोशिशों को नजरअंदाज नहीं कर सकते। निर्माण के छह साल के बाद 'रंग रसिया' का रिलीज हो पाना ही सच बयान कर देता है। केतन मेहता की यह फिल्म छह सालों के अंतराल के बावजूद पुरानी और बासी नहीं लगती।
कई फिल्मों को देखते हुए स्पष्ट पता चलता है कि कुछ कलाकार अपने किरदारों को लेकर अधिक आश्वस्त नहीं रहते। कुछ दिनों की शूटिंग के बाद उनकी संलग्नता बढ़ती है। इस फिल्म में रणदीप हुडा ऐसा ही एहसास देते हैं। उनके परफारमेंस में एकरुपता और चढ़ाव नहीं है। इस फिल्म में सुगंधा की भूमिका में नंदना सेन अचंभित करती हैं। हिंदी फिल्मों की अधिकांश अभिनेत्रियां अपनी देह के प्रति सहज नहीं होतीं। अंग प्रदर्शन के दृश्यों में उनका संकोच निर्देशक की कल्पना को जकड़ता है। नंदना सेन में यह संकोच नहीं है। फिल्म कुछ दृश्यों में उनकी सहजता प्रभावित करती है। उन्होंने फिल्म की जरूरत को ध्यान में रखा है।इस फिल्म में गीत-संगीत की अधिक आवश्यकता नहीं थी। पार्श्व संगीत में कथ्य और विषय के समय और ध्वनि का ध्यान रखना चाहिए था। फिल्म का संगीत कमजोर है। फोटोग्राफी नयनाभिरामी है। शीर्षक "गीत रंगरसिया का फीलर के तौर पर किया गया इस्तेमाल अखरता है।


क्या बेइज्जतियों का बदला लेंगे अरविन्द केजरीवाल

क्या  बेइज्जतियों का बदला लेंगे अरविन्द केजरीवाल
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अजय शास्त्री (संपादक)
 बॉलीवुड सिने रिपोर्टर (बीसीआर न्यूज़)
Email: editorbcr@gmail.com
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(बीसीआर-नई दिल्ली) दिल्ली विधानसभा भंग हो चुकी है इसलिए पांचवीं विस सदस्यों का ग्रुप फोटो सेशन शुक्रवार को कराया गया। विधानसभा सचिवालय में 67 में से 61 विधायक पहुंचे। तभी एक विधायक बोले कि कोई खांसेगा नहीं। दूसरी तरफ से आवाज आई, मफलर संभाल लेना। इतना सुनकर हंसी के ठहाके लगे।
हद तो तब हो गई, जब भाजपा विधायक साहब सिंह चौहान ने सारी मर्यादाएं तोड़ते हुए पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल की कुर्सी पर कब्जा कर लिया। पास बैठे जगदीश मुखी मुस्कुरा रहे थे।
मामला यह था कि विधानसभा स्पीकर मनिंदर सिंह धीर के साथ की एक तरफ वाली कुर्सी पर जगदीश मुखी और दूसरी तरफ की कुर्सी पर पूर्व सीएम केजरीवाल के नाम का टैग लगा था।
जब केजरीवाल बैठने के लिए आए तो चौहान ने उनके नाम का टैग हटा कर फेंक दिया और कुर्सी पर बैठ गए। बाद में जब केजरीवाल वहां पहुंचे तब भी चौहान ने कुर्सी नहीं छोड़ी और मुखी व अपने बीच में ही बैठने के लिए थोड़ी-सी जगह दी।
केजरीवाल के अपमान के बाद भाजपा विधायक चारों तरफ घिर गए। हालांकि‌ यह पहला मौका नहीं था, जब केजरीवाल का अपमान हुआ हो। ऐसा पहले भी हो चुका है।

गोविंदा की हॉट बेटी जल्द करेगी बॉलीवुड में एंट्री


गोविंदा की हॉट बेटी जल्द करेगी बॉलीवुड में एंट्री
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अजय शास्त्री (संपादक)
बॉलीवुड सिने रिपोर्टर
Email: editorbcr@gmail.com
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बीसीआर (मुंबई) बॉलीवुड के जाने-माने अभिनेता गोविंदा की बेटी नर्मदा आहूजा भी अब फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने जा रही है। हाल ही में टेंपा बे फ्लोरिडा में हुये इंटरनेशनल इंडियन फिल्म अकादमी पुरस्कार (आइफा) के दौरान गोविंदा की पत्नी सुनीता ने कहा था कि नर्मदा लंबे समय से बॉलीवुड में आने की तैयारी कर रही है। तीन वर्षो में नर्मदा 30 फिल्मों का प्रस्ताव ठुकरा चुकी है। अब चर्चा है नर्मदा बॉलीवुड में अपनी पारी शुरू करने जा रही है।
चर्चा है कि नर्मदा पंजाबी फिल्म निर्देशक स्मीप कांग की आने वाली हिंदी फिल्म में काम करने जा रही है। इस फिल्म में नर्मदा के अपोजिट पंजाबी सुपरस्टार गिप्पी ग्रेवाल होंगे। नर्मदा की पहली फिल्म एक कॉमेडी होगी जो अगस्त के अंतिम सप्ताह तक फ्लोर पर आ जाएगी। हालांकि अब तक इस फिल्म के नाम का खुलासा नहीं हुआ है।