Monday 30 June 2014

नई दिल्ली में 5 जुलाई से शुरु होगा 5वां जागरण फिल्म फेस्टिवल

नई दिल्ली में 5 जुलाई से शुरु होगा 5वां जागरण फिल्म फेस्टिवल...
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-अजय शास्त्री- 
संपादक - "बॉलीवुड सिने रिपोर्टर"
ईमेल : editorbcr@gmail.com
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दिल्ली के उपरान्त देश के 14 शहरों में जाएगा यह फेस्टिवल
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शैलेश नेवटियाः 9716549754, तेजलः 09820404621, प्रियंकाः 09833699707
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बीसीआर (नई दिल्ली)  हमारे देश में एक से बढ़कर एक फिल्म समारोह आयोजित किये जाते हैं। ऐसे ही फिल्म समारोह में से एक है जागरण फिल्म फेस्टिवल। यह ऐसा फिल्म फेस्टिवल है, जिसमें फिल्मों का विशाल संग्रह देखा जा चुका है, जो पहले कभी देखा ना गया हो। पिछले चार संस्करणों के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के उपरान्त यह फेस्टिवल एक बार फिर पूरे जोश के साथ वापस आ रहा है और इस बार जागरण फिल्म फेस्टिवल दुनिया भर से और अधिक विस्तारित श्रेणी की फिल्में पेश करेगा। 5वें जागरण फिल्म फेस्टिवल के फिल्म संग्रह का अनावरण नई दिल्ली में 5 जुलाई 2014 से लेकर 9 जुलाई 2014 तक सिरिफोर्ट सभागार में और मुंबई में 23 सितंबर, 2014 से 28 सितंबर 2014 के बीच किया जाएगा। दिल्ली में इसकी समाप्ति के बाद, यह फेस्टिवल देशभर के 14 शहरों का दौरा करेगा और ऐसी फिल्में दिखाएगा जो इन क्षेत्रों तक काफी कम पहुंच पाती है।

समारोह के विषय में जागरण समूह के वाइस प्रेसिडेंट बसंत राठोड़ बताते हैं कि, “इस वर्ष फिल्म फेस्टिवल का 5वां संस्करण एक खास श्रेणी ‘सिनेमा ऑफ द अपराइजिंग’ (विद्रोह का सिनेमा) का प्रदर्शन करेगा जिसके तहत सात बेहद खास फिल्में दिखाई जाएंगी। मानवीय संवेदनाओं की आजादी का विषय ‘जागरण के सिद्धांत’ हमेशा से बेहद करीब रहा है और जब हम फेस्टिवल की सामग्री पर निर्णय ले रहे थे, तब हमने इस विषय और इस थीम से संबंधित फिल्मों का चुनाव किया।”
यह फेस्टिवल इंसानों, सामाजिक समूहों और मानव जाति का विद्रोह और संघर्ष सामान्य तरीके से जीवंत करने का उद्देश्य रखता है जो उत्पीड़न और अत्याचार, मानवीय उत्साह को काबू में करने, आजादी, अधिकार और अन्य मानवीय मूल्यों के खिलाफ उठ खड़ा हुआ। यह खास श्रेणी एक साथ सात कहानियां पेश करेगी, जो इंसानी जीवन और मस्तिष्क की स्वतंत्रता के संघर्ष को समर्पित है। इसमें चार अंतरराष्ट्रीय और तीन भारतीय फिल्में होंगी। 
इस सूची में शामिल है, ‘बीट्रिजस् वॉर’ (पूर्वी तिमोर), ‘आउटसाइड द लॉ’ (अल्जीरिया/ट्यूनिशिया, फ्रांस), ‘बैटलशिप पोटेमकिन’ (रूस-मूक), ‘द ट्रायल ऑफ जॉन ऑफ आर्क’ (फ्रांस), ‘बिरसा मुंडा’ (भारत), ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस’ (भारत) और ‘केरल वर्मा पाझासी राजा’ (भारत)।
‘बीट्रिजस् वॉर’ का निर्देशन लुइजी एक्विस्टो बेटी रेइस ने किया है जिसमें पूर्वी तिमोर में महिलाओं के उत्पीड़न और इंडोनेशिया द्वारा उनके क्षेत्र में नई बस्ती बसाने के खिलाफ उनका संघर्ष दिखाया गया है। वहीं रेशीद बुचैर्ब द्वारा निर्देशित ‘आउटसाइड द लॉ’ में अल्जीरियाई नागरिकों के संघर्ष का गहरा चित्रण और अपने देश को आजाद कराने की उनकी ख्वाहिश को दिखाया है जो फ्रांस द्वारा उनकी जमीन पर उपनिवेश का विरोध करते हैं। यह फिल्म वर्ष 2010 के कान फिल्म फेस्टिवल की प्रतियोगिता सहित दुनिया भर की कई अन्य अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित हो चुकी है। 
सन 1925 में बनी ‘बैटलशिप पोटेमकिन’ एक मूक फिल्म है जिसके निर्देशक सर्गेई आईसिनटाइन हैं और निर्माता कंपनी मोसफिल्म है। इसमें 1905 में हुए रूसी सैन्य विद्रोह का नाटकीय संस्करण दिखाया गया है जिसमें रूसी युद्धपोत पोटेमकिन के चालकदल ने ट्सारिस्ट शासन के अपने ही अधिकारियों के खिलाफ विद्रोह कर दिया था। 

फ्रेंच फिल्म ‘द ट्रायल ऑफ जॉन ऑफ आर्क’ रॉबर्ट ब्रेसन द्वारा निर्देशित है। इस फिल्म में गैर-पेशेवर कलाकारों ने अभिनय किया है और इसकी शूटिंग बेहद सीमित तरीके से की गई है। ‘बिरसा मुंडा’ झारखंड के निर्देशक अशोक शरण द्वारा बनाई गई है जिसमें इस वीर स्वतंत्रता सेनानी की जीवनगाथा देखी जा सकती है। बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश अत्याचार के खिलाफ हथियार उठाए थे। 
वहीं ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस’ श्याम बेनेगल की फिल्म है जो अंग्रेजों के खिलाफ नेताजी के सतत संघर्ष और उनके जीवन को दिखाती है। वर्ष 2009 में बनी ‘केरल वर्मा पाझासी राजा’ ऐतिहासिक ड्रामा फिल्म है जो 18वीं सदी के हिंदु राजा पाझासी राजा के जीवन पर आधारित है जिन्होंने अंग्रेजों से युद्ध किया था।
फेस्टिवल के पिछले संस्करण में चर्चित रही श्रेणियां द इंडियन शोकेस और द इंटरनेशनल कॉम्पिटिशन भी इस बार भी वापसी कर रही हैं, जिनमें 20 फीचर फिल्मों का संग्रह होगा। जागरण शॉर्ट्स नामक लघु फिल्मों की श्रेणी में इस बार 20 अंतरराष्ट्रीय लघु फिल्मों का प्रदर्शन नई दिल्ली और मुंबई में किया जाएगा।
जागरण के एक अधिकारी के अनुसार, “जागरण फिल्म फेस्टिवल एक तरह से खास हैय यह देशभर के दर्शकों से जुड़ना चाहता है। यह पहला अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल है जो लोगों तक उनके शहरों में जाकर पहुंचता है और उनके सहज माहौल में सिनेमा दिखाता है।”

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