Saturday 29 November 2014

UNGLI - Film Review by Ajay Shastri (3 star)

फिल्म रिव्यूः उंगली 
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समीक्षक : अजय शास्त्री (संपादक)
 बॉलीवुड सिने रिपोर्टर 
Email: editorbcr@gmail.com
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एक्टरः इमरान हाशमी, कंगना रनोट, रणदीप हुड्डा, संजय दत्त, नेहा धूपिया, अंगद बेदी, नील भूपालम 
डायरेक्टरः रेंसिल डिसिल्वा 

रेटिंग : तीन स्टार 
अवधि : 1 घंटा 54 मिनट

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बीसीआर (मुंबई) भारतीय समाज में कैंडल मार्च उसके बाद ही विरोध का प्रतीकात्मक अभियान बन चुका है। रेंसिल डिसिल्वा ने 'रंग दे बसंती' के प्रभाव में 'उंगली' का लेखन और निर्देशन किया है। इस बार विरोध के लिए उंगली है।राकेश ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म 'रंग दे बसंती' की पटकथा में रेंसिल डिसिल्वा सहायक थे। उस फिल्म ने सिस्टम से निराश युवकों के गुस्से एवं प्रतिरोध को एक दिशा दी थी।  चार दोस्त. एक टीवी रिपोर्टर, एक मैकेनिक, एक कंप्यूटर इंजीनियर और एक फार्मासिस्ट. चारों के अतीत का एक सिरा. उससे सब जुड़े. उनका मकसद भी. मकसद सिस्टम का करप्शन दूर करना. इसके लिए वे बनाते हैं गैंग. चूंकि गैंग मॉर्डन है, इसलिए नाम उंगली है. और मकसद, वह तो साफ ही है. उधर इस गैंग की हरकतों से मुंबई पुलिस में हड़कंप है. मामला घी का है. इसलिए यहां भी टेड़ी उंगली काम पर लगाई जाती है. एंटर पुलिस वाला एसीपी काले. एक और एंटर. इस बार इंस्पेक्टर निखिल. दोनों के काम के तरीके अलग. नीयत एक. मगर ये उंगली गैंग का भंडाफोड़ करते करते सिस्टम की सड़ांध से नजर नहीं फेर पाते. ऐसे में जरूरत है कुछ ऐसा करने की कि कोई युवा गैंग बनाने की न सोचें. सब अपना फर्ज पूरा करें. बोलो सत्यनारायण भगवान की जय.
जय न करें तो क्या करें. ऐसा लगता है कि जैसे हिंदी फिल्में एक दबाव में जी रही हैं. पूरी फिल्म में जो रायता फैलाया है, उसे एक बारगी समेटने का दबाव. और इस चक्कर में जो समाधान पेश किया जाता है. वह ऐसा ही है, जैसे कोई व्रत कथा. जैसे इनके दिन बहुरे, सबके बहुरें जैसा.
 
फिल्म यंग है. स्लिम है. स्मार्ट है. पर क्लाइमेक्स में ओवरस्मार्ट हो जाती है. इसमें पेस है. पर गहराई का अभाव है. कई कहानियां और किरदार बस यूं ही छूकर भागती है फिल्म. कई ट्रैक समेटने की जद्दोजहद है ये. कटोरा भर एक्टर्स लेने पर ये तो होना ही था.
इमरान हाशमी, रणदीप हुड्डा ने अच्छी एक्टिंग की है. कंगना औसत रही हैं. उनके करने को ज्यादा कुछ था नहीं. जहां था, वहां वह कतई तैयार नहीं दिखीं. अंगद फालतू के कॉमिक दिनों की याद दिला गए. नील भूपालम को और फिल्में करनी चाहिए. संजय दत्त पुलिस वाले के रोल में जमे हैं. अब उनकी पीके का इंतजार है. फिल्म में कुछ देर के लिए ही सही महेश मांजरेकर आए. आए और छाए. बिना ज्यादा कुछ बोले. शायद इसे ही उम्दा एक्टिंग कहते हों.
फिल्म के कुछ गाने अच्छे हैं. मसलन, पाकीजा के बोल उम्दा हैं. फिल्म के कई कंपोजर हैं. इसलिए सातत्य का अभाव है. और हैप फैक्टर बरतने के लिए जो रैपनुमा गाने भरे गए हैं, वे बेदम लगते हैं.
डायरेक्टर रेंसिल डिसिल्वा इससे पहले टीवी सीरीज 24 बना चुके हैं. तब उनको ये फायदा था. कि सीरीज के लिए कहानी का बेसिक स्ट्रक्चर तैयार था. उन्हें बस उसका भारतीयकरण करना था. उंगली में चुस्त कहानी की दरकार थी. यहां वह सेकंड हाफ में कुछ कमजोर पड़ गए.
उंगली इस वीकएंड पर देख सकते हैं. बशर्ते आपको सिस्टम सुधारने के लिए आखिर में दिए फिल्मी सॉल्यूशन से ज्यादा दिक्कत न हो. और किरदारों का स्टेटस अपडेट जैसा परिचय अखरे नहीं.

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