फिल्म रिव्यू: मैरी कॉम (४.5 स्टार)
======================
समीक्षक : अजय शास्त्री
(संपादक) बॉलीवुड सिने रिपोेर्टर
Email: editorbcr@gmail.com
===================
प्रमुख कलाकार: प्रियंका चोपड़ा, दर्शन कुमार और सुनील थापा।
निर्देशक: ओमंग कुमार
संगीतकार: शशि-शिवम
स्टार: साढ़े चार
समय : १२४ मिनट
==============
======================
समीक्षक : अजय शास्त्री
(संपादक) बॉलीवुड सिने रिपोेर्टर
Email: editorbcr@gmail.com
===================
प्रमुख कलाकार: प्रियंका चोपड़ा, दर्शन कुमार और सुनील थापा।
निर्देशक: ओमंग कुमार
संगीतकार: शशि-शिवम
स्टार: साढ़े चार
समय : १२४ मिनट
==============
बीसीआर (नई दिल्ली) दोस्तों मैरी कॉम के जीवन आधारित और जीत को समेटती ओमंग कुमार की फिल्म 'मैरी कॉम' मणिपुर की एक साधारण लड़की की अभिलाषा और संघर्ष की कहानी है। देश के सुदूर इलाकों में अभाव की जिंदगी जी रहे युवक युवतियों के जीवन पर आधारित हैं। वहां माता पिता अपने बच्चों को सपनों की जिंदगी जीने से मना करते हैं वे सिर्फ चाहते हैं कि उनके बच्चे सपनों को भूल कर रोजमर्रा जिंदगी को कुबूल कर लें। देश में रोजाना ऐसे लाखों सपने प्रोत्साहन और समर्थन के अभाव में चकनाचूर होते हैं। मगर इनमे एक है, एम सी मैरी कॉम जो एक ज़िद्दी लड़की है वह जो चाहती है करके रहती है इसी बीच मैरी कि मुलाकात बॉक्सिंग कोच से हो जाती हैं, जो मैंगते चंग्नेइजैंग मैरी कॉम की जिद को समझ जाते है और उसको बॉक्सिंग सीखना शुरू करते है और उसे प्रोत्साहित करते हैं। अप्पा के विरोध के बावजूद मां के सपोर्ट से मैरी कॉम बॉक्सिंग की प्रैक्टिस आरंभ कर देती है। वह धीरे-धीरे अपनी चौकोर दुनिया यानि बॉक्सिंग रिंग, में आगे बढ़ती है। एक मैच के दौरान टीवी पर लाइव देख रहे अप्पा अचानक बेटी को ललकारते हैं। फिल्म की खूबी है कि भावनाओं के इस उद्रेक में यों प्रतीत होता है कि दूर देश में मुकाबला कर रही मैरी कॉम अप्पा की ललकार सुन लेती है। वह दोगुने उत्साह से आक्रमण करती है और विजयी होती है।
हालांकि 'मैरी कॉम' मणिपुर के परिवेश, माहौल और जिंदगी को करीब और विस्तार से देख पाने की चाहत पूरी नहीं करती, लेकिन झलकियों और बैकड्राप में उसका एहसास हो जाता है। इस फिल्म में पहली बार हिंदी सिनेमा के पर्दे पर मणिपुर के किरदारों को उनके समाज में हम देखते हैं। लेखक-निर्देशक ने मणिपुर मे चल रहे विरोध और आंदोलन को भी नजरअंदाज नहीं किया है। हां, वे उसे फिल्म के पार्श्व में ही रखते हैं। निश्चित ही मैरी कॉम का जीवन उनसे अप्रभावित नहीं रहा होगा,लेकिन वह फिल्म का कथ्य नहीं है।
'मैरी कॉम' कई स्तरों पर प्रभावित करती है। फिल्मी भाषा में यह साधारण लडकी की असाधारण कहानी है। गौर करें तो जिंदगी की साधारण घटनाओं से जूझती और अपनी मंजिल की ओर बढ़ती मैरी कॉम अपने फैसलों और व्यवहार में असाधारण हो जाती है। कई व्यक्तियों का उसे सहयोग मिलता है। सबसे बड़ा सहयोग उसे पति की तरफ से मिलता है, जो जुड़वां बच्चों के लालन-पालन की जिम्मेदारी लेता है और अपनी बीवी को आगे बढऩे की ताकत देता है। पुरुष प्रधान समाज में ऐसे किरदार हैं। उन्हें सही संदर्भ के साथ पेश नहीं किया जाता। शादी और फिर बच्चों का जन्म मैरी कॉम की जिंदगी की बड़ी घटनाएं हैं। बॉक्सिंग पर पूर्णविराम लगाती इन घटनाओं को तोड़ कर मैरी कॉम विजय अभियान जारी रखती है। कई मार्मिक और कमजोर क्षण भी आते हैं, लेकिन वह हाथों से हमेशा के लिए दस्ताने नहीं उतारती। अभ्यास के दौरान बच्चों की देखभाल के लिए वह अवश्य दस्ताने उतारती है। हिंदी फिल्मों ने मां की छवि को त्याग की मूत्र्ति का पर्याय बना दिया है। पर्दे और पर्दे के बाहर फिल्म संसार में इस मां के गुणगान किए जाते हैं। 'मैरी कॉम' भी मां है। वह भी ममत्व के द्वंद्व और दुविधा से गुजरती है, लेकिन अपने प्रोफेशन को तिलांजलि नहीं देती। वह इस चुनौती को कायदे से संभालती है।
'मैरी कॉम' प्रियंका चोपड़ा की फिल्म है। मैरी कॉम की जिंदगी से हम वाकिफ है। उनकी निस्संदेह सराहना करते हैं। देखना यह था कि प्रियंका चोपड़ा उस जुझारु और विजयी बॉकसर को पर्दे पर कैसे जीवित करती हैं। मैरी कॉम और प्रियंका चोपड़ा के चेहरे का नहीं मिलना एक तथ्य है। इस तथ्य को प्रियंका चोपड़ा अपने अभिनय और प्रस्तुति से पाट देती हैं। वह मैरी कॉम के जोश और भावना की तीव्रता को जज्ब करती हैं। फिल्म के आरंभिक दृश्य में ही जब वह पति के साथ प्रसव पीड़ा से गुजरती हुई गली-नुक्कड़ों से होते हुए एक जगह आकर बैठती है और कैमरा उनके चेहरे का क्लोज शॉट लेता है। उस समय वह असह्य पीड़ा में केवल 'उई मां' कहती है और हम पाते हैं कि वह किरदार में ढल चुकी हैं। प्रियंका चोपड़ा ने इस फिल्म के लिए कसरती शरीर के साथ उस हिम्मती मन पर भी मेहनत की है, जो मैरी कॉम के चरित्र को आत्मसात करने के लिए जरूरी था। प्रियंका चोपड़ा अपनी कोशिश में विजयी हैं।
फिल्म के अन्य किरदारों में पति की भूमिका निभा रहे दर्शन कुमार और कोच की भूमिका में आए सुनील थापा अपने अभिनय से 'मैरी कॉम' को विश्वसनीय और प्रभावशाली बनाते हैं। दोनों ने अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है। अप्पा की भूमिका में रॉबिन दास थोड़े नाटकीय हो गए हैं, जबकि मां की भूमिका में रजनी बासुमटराई स्वाभाविक लगी हैं। फेडरेशन के सदस्य के रूप में शक्ति सिन्हा के किरदार के काइयांपन को उभारते हैं।
'मैरी कॉम' प्रेरक फिल्म है। सबसे बड़ी बात कि यह अपने जीवन में ही किंवदंती बन चुकी मैरी कॉम की कहानी है। उनका जीवन और खेल अभी प्रगति पर है। हिंदी में जीवित और सक्रिय हस्ती पर बनी यह पहली बॉयोपिक है। मेरी तरफ से इस फिल्म को ४.५ स्टार दिए जाते हैं.