फिल्म रिव्यू: बॉबी जासूस
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-अजय शास्त्री-
(संपादक) बॉलीवुड सिने रिपोर्टर
Email: editorbcr@gmail.com
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कलाकार: विद्या बालन और अली फैजल
निर्देशक: समर शेख
संगीतकार: शांतनु मोइत्रा
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स्टार: तीन स्टार
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अवधि:121 मिनट
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-अजय शास्त्री-
(संपादक) बॉलीवुड सिने रिपोर्टर
Email: editorbcr@gmail.com
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कलाकार: विद्या बालन और अली फैजल
निर्देशक: समर शेख
संगीतकार: शांतनु मोइत्रा
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स्टार: तीन स्टार
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अवधि:121 मिनट
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बीसीआर (मुंबई) 'बॉबी जासूस' का निर्माण दिया मिर्जा ने किया है। निर्देशक समर शेख हैं। यह उनकी पहली फिल्म है। उनकी मूल कहानी को ही संयुक्ता चावला शेख ने पटकथा का रूप दिया है। हैदराबाद के मुगलपुरा मोहल्ले के बिल्किश की यह कहानी किसी भी शहर के मध्यवर्गीय मोहल्ले में घटती दिखाई पड़ सकती है। हैदराबाद छोटा शहर नहीं है, लेकिन उसके कोने-अंतरों के मोहल्लों में आज भी छोटे शहरों की ठहरी हुई जिंदगी है। इस जिंदगी के बीच कुलबुलाती और अपनी पहचान को आतुर अनेक बिल्किशें मिल जाएंगी, जो बॉबी जासूस बनना चाहती हैं। मध्यवर्गीय परिवार अपनी बेटियों को लेकर इतने चिंतित और परेशान रहते हैं कि उम्र बढ़ते ही उनकी शादी कर वे निश्चिंत हो लेते हैं। बेटियों के सपने खिलने के पहले ही कुचल दिए जाते हैं। 'बॉबी जासूस' ऐसे ही सपनों और शान की ईमानदार फिल्म है।
बिल्किश अपने परिवार की बड़ी बेटी है। उसका एक ही सपना है कि मोहल्ले में उसका नाम हो जाए। वह जासूसी की दुनिया में मैदान मारना चाहती है। करमचंद उसने देख रखा है। सीआईडी देखती रहती है। जासूसी का काम उसके अब्बा को कतई नापसंद है। वे उम्मीद हार चुके हैं। उन्हें लगता है और यह हमें दिखता भी है कि बेटी को अम्मी का समर्थन और विश्वास हासिल है। बिल्किश कोशिश करती है। उसे पेशेवर जासूसों का प्रोत्साहन नहीं मिलता। उसके हाथ कोई केस भी नहीं आता। अचानक एक दिन एक अमीर उसे एक लड़की की खोज के लिए मोटी रकम एडवांस में देता है। वह सफल होती है। उसे उसी अमीर आदमी से और केस मिलते हैं। सब कुछ अच्छा चल रहा है, तभी उसे संदेह होता है कि अपने शौक और सपनों में कहीं वह कुछ गलत तो नहीं कर बैठी। यहां एक रहस्य बनता है। लेखक-निर्देशक इस रहस्य को बनाए रखने में सफल होते हैं। कामयाबी और जीतने की जिद के साथ बिल्किश अपने दोस्तों के साथ लगी रहती है। इस कोशिश और अभियान में हम उस मोहल्ले के अंतर्विरोधों और सोच से वाकिफ होते हैं। साथ में बाप-बेटी के रिश्ते का अनकहा पहलू भी चलता है, अंत में उजागर होता है।
'बॉबी जासूस' की नायिका विद्या बालन हैं। फिल्मी भाषा में यह फिल्म उनके सबल कंधों पर टिकी है। वह अपनी मजबूत परफॉरर्मेंस से इसे अंत तक निभा ले जाती हैं। उन्हें इसमें सहयोगी कलाकारों का पूरा समर्थन मिला है। विद्या बालन की अनेक खूबियों में एक खूबी यह भी है कि वह रूप और गेटअप बदलते समय अपने रंगरूप की परवाह नहीं करतीं। अनेक दृश्यों में निर्देशक ने उन्हें वास्तविकता की हद तक नैचुरल रखा है। दोस्त, प्रेमी और पति तसव्वुर की क्रमवार भूमिका में अली फजल ने विद्या बालन का समुचित साथ निभाया है। इस फिल्म में राजेन्द्र गुप्ता का अभिनय उल्लेखनीय है। सहयोगी भूमिकाओं में सिद्ध कलाकारों को सीन मिल जाएं तो उनकी प्रतिभा के दर्शन होते हैं। किरण कुमार, आकाश दहिया और प्रसाद बर्वे अपनी भूमिकाओं में जंचते हैं। 'बॉबी जासूस' में सुप्रिया पाठक, तन्वी आजमी और जरीना वहाब के हिस्से ठोस दृश्य नहीं आ सके हैं। ऐसा लग सकता है कि उनकी मौजदूगी के साथ न्याय नहीं हो सका। मुमकिन है निर्देशक ने उन्हें इतनी ही भूमिकाओं के लिए ही चुना हो।
फिल्म में कुछ कमियां भी हैं। बिल्किश की खोजबीन दो प्रसंगों में थोड़ी लंबी हो गई है। फिल्म यहां कमजोर पड़ती है, लेकिन बाद की घटनाओं और कलाकारों के परफॉर्मेंस से उनकी भरपाई सी हो जाती है। बिल्किश और तसव्वुर का रोमांटिक गाना भी फिल्म की थीम में चिप्पी लगता है। अगर ये कमियां नहीं रहतीं तो 'बॉबी जासूस' का प्रभाव और ऊंचाई तक पहुंचता। यह 21 वीं सदी का मुस्लिम सोशल है,जो आज की सच्चाइयों का चित्रण करती है। मेरी तरफ से इस फिल्म को 3 स्टार.
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